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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी दोषी को समय से पहले रिहाई देना सरकार का काम है NDTV हिंदी -दिल्ली देहात से

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, समय से पहले ही मामला सरकार की नीति के तहत सामने आता है

नई दिल्ली :

दोषियों की समय से पहले रिलीज होने पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। SC ने कहा है, “किसी दोषी को समय से पहले प्रकट करना सरकार का काम है। समय से पहले प्रकट होने का मामला सरकार की नीति के तहत आता है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात में हत्या के मामले में उम्रकैद की झलक देने की समय इससे पहले रिलीज के मामले में आदेश देने से इनकार कर दिया, हालांकि गुजरात सरकार को याचिकाकर्ता की समय से पहले रिलीज के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दोषी ठहराते समय जो नीति होगी, उसी के अनुसार समय से पहले कोर्ट ने गुजरात सरकार को 1992 की नीति के अनुसार विचार करने के निर्देश दिए।

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दोषी है कि बिलकिस बानो के तलहगारों को समय से पहले रिहा करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। उन दोषियों को पिछले साल गुजरात सरकार ने 9 जुलाई 1992 की नीति पर ही रिहा कर दिया था। इसके बाद इसे बिलकिस बानो और अन्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। सोमवार को गुजरात में हत्या के आरोप हितेश के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की याचिका का फैसला आया है। हत्या के मामले में उम्रकैद की तरहफ्ता की समय से पहले याचिका खारिज कर दी गई।

पीठासीन ने अपने फैसले में कहा, “हमारा सुविचारित मत है कि विशिष्ट संबंधों में, इस पर राज्य द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए। चूंकि समय से पहले रिलीज एक कार्यकारी कार्रवाई है, इसलिए यह राज्य मामला सरकार द्वारा जोड़ने के लिए संभव है। हम सक्षम अधिकारी को निर्देश देते हैं कि राज्य सरकार समय से पहले रिलीज के अनुरोध पर विचार करें, जिसमें ऊपर उल्लेख किया गया है और जो नीति यहां लागू होगी, वह 1992 की नीति है।”

यह मामला है
दरअसल, याचिकाकर्ता हितेश को हत्या का दोषी करार देते हुए 1992 में आधार कारावास की सजा सुनाई गई थी। अक्टूबर, 2009 में उनकी अपील के खिलाफ सजा को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद, एक सह-आरोपी को 2017 में समय से पहले जारी कर दिया गया था। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने भी इसकी मांग की। खास बात ये है कि 2020 में सरकार द्वारा प्राधिकरण समिति ने भी दायित्वों को व्यवहार को अच्छा बताया और कहा कि वो अब अपराध नहीं करेगा। साथ ही ये भी कहा कि उसने एक बार जेल ब्रेक होने से भी बचा लिया था। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसने 15.6 साल की वास्तविक सजा काट ली थी और यह छूट के साथ 19 साल तक की हो गई थी।

समय से पूर्व रिलीज को लेकर यह अत्यधिक आपत्तिजनक था
हलफनामे द्वारा दायर, समय से पहले रिलीज होने पर मुख्य आपत्ति यह थी कि जब याचिकाकर्ता को 2005 में तीन सप्ताह के लिए जमानत राज्य जारी किया गया था तब तक वह 5 साल तक बहरा रहा था, जब तक कि उसे 2010 में फिर से नहीं लिया गया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसके आचरण के लिए सजा के तहत चार फरलॉ से अपमानित किया गया था। 1992 की राज्य नीति 14 साल की सजा के समय से पहले जारी करने की सुविधा देती है। याचिकाकर्ता द्वारा समय से पहले अर्जी को राज्य में पहुंचने से पहले रिलीज किया जाना चाहिए। न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के बाद, राज्य की नीति के तहत समय से पहले प्रकट होता है। उसी समय दोषी की ओर से ऋषि मल्होत्रा ​​ने कहा कि दोषी को समय से पहले ही मिलनी चाहिए। वो जमानत मिलने के बाद पांच साल भंग रहा था लेकिन इसके 2010 से लगातार जेल में है। समिति ने उनके पक्ष में टैग की है। वह जेल ब्रेक होने से भी बच गया था।

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