(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
संपत्ति में समानता की मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को तैयार हो गया। मुस्लिम महिला द्वारा याचिका में दायर याचिका में शरीयत कानून के प्रावधान को लेकर भेदभाव भरा दावा किया गया है कि एक पुरुष की तुलना संपत्ति में एक महिला को समान हिस्सा नहीं देना “भेदभावपूर्ण” है। साथ ही ये संविधान के तहत लाइसेंसकृत अधिकारों का उल्लंघन भी है।
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यौगिक कृष्ण मुरारी और संगीतकार संजय करोल की याचिका बुशरा अली ने दायर की है, जिसमें फ़ाइल हाई कोर्ट ने 6 जनवरी के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दावा किया कि ये उनकी शिकायत है कि एक बेटी होने के नाते, शेरयत कानून के अनुसार, उनके पुरुष समकक्षों की तुलना केवल उन्हें शेयर किए गए हैं।
मामले में याचिकाकर्ता ने याचिकाकर्ता के 11 भाई-बहनों को नोटिस जारी किया जिसमें चार बहनें शामिल हैं।
वकील बीजो मैथ्यू जॉय के माध्यम से याचिका में कहा गया है कि बुशरा एक विभाजन सूट में एक डिक्री धारक हैं, जिसके तहत 19 जनवरी, 1995 की अर्ली डिक्री के अनुसार, उन्हें 1.44 एकड़ जमीन संपत्ति के 7/152 शेयर दिए गए थे थे।
जॉय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने भी यथास्थिति का आदेश दिया है। बुशरा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, “याचिका कर्ता ट्रायल कोर्ट द्वारा अंतिम डिक्री से व्यस्थित है, जिसमें याचिकाकर्ता को वकील आयुक्त की योजना के प्लॉट डी के रूप में मार्क संपत्ति का केवल 4.82 सेंट दिया गया था।” बुशरा ने कहा कि उनके पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हो गई, वह अपने पीछे पत्नी, सात बेटे और पांच बेटियों को छोड़ गए हैं।
अपनी याचिका में उन्होंने कहा, “याचिकाकर्ता की शिकायत है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव के बावजूद संविधान में निहित है। भले ही 19 जनवरी, 1995 की अर्ली डिक्री को चुनौती नहीं दी गई थी और याचिकाकर्ता ने अंतिम रूप से आवेदन किया था। निवेदन है कि संपत्ति कानून के अनुसार संपत्ति का विभाजन भेदभावपूर्ण है और इसे अलग रखा जाना चाहिए। संविधान के लेख 15 का उल्लंघन है और इसलिए संविधान के लेख 13 के अनुसार शून्य है।”
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