दिल्ली देहात से….

हरीश चौधरी के साथ….

फास्ट एंड फ़्यूरिऔस की संस्कृति और सड़क दुर्घटना -दिल्ली देहात से

फास्ट एंड फ़्यूरिऔस की संस्कृति और सड़क दुर्घटना
-दिल्ली देहात से

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‘फास्ट एंड फ़्यूरिऔस’ आधुनिक वैश्विक संस्कृति की वास्तविकता है। सबसे तेज। समाचार से लेकर खेल तक। अर्थनीति से लेकर राजनीति तक- सबमें जल्दीबाजी है। और जल्दी हवा की इस संस्कृति में जलन भी है हिंसा भी। यह दुखद है और यह हिंसा आत्महत्या है। ग्लोबल कैपिटल ने समय को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। एक अर्थ में यह समय का नियंता हो गया है। सुबह, दोपहर, शाम सब पर इसी का पहरा है। आम आदमी से इसकी सबसे कीमती चीज समय भी लिया। आदमी का समय खराब हो गया है। समय के इस भयंकर अभाव ने जल्दी रणनीति की समझ बनाई है। रोड कैजुअल्टी उसी ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ की संस्कृति के रूप में प्रकट होती है। यह मानवता सभ्यता के सामने एक दैनिक आपदा की तरह है। पूरी दुनिया में हर दिन सैकड़ो-हजरों के शिकार होते रहते हैं।

भारत में 2021 में जितनी भी सड़क दुर्घटनाएं हुईं, उनमें से लगभग 60 प्रतिशत की गति निर्धारित गति से तेज चलने के कारण हुई है- गति जीवन की गति को प्रमुख कर दे रही है। हाल के वर्षों में देखें कि तेज़ी से विशाल सड़कें बन रही हैं, घूमने पर संख्याओं की संख्या में वृद्धि हो रही है और उसी रफ़्तार से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है। एनसीआरबी- 2021 की रिपोर्ट के सन्दर्भ में अगर साल 2020 और 2021 के बीच समान तुलना करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह तेजी से बढ़ रहा है। झारखंड वर्ष 2020 में यह 354796 था तो वह वर्ष 2021 में बढ़कर 403116 हो गया और इसमें करीब 155622 लोग फंस गए और करीब 371884 गंभीर रूप से घायल हो गए। यदि महत्वपूर्ण दुर्घटनाओं के अनुसार दुर्घटना हो जाती है तो दो पहिया वाहन हादसों के सबसे अधिक शिकार होते हैं जिसका अनुपात करीब 44.5 है। और इस सन्दर्भ में यदि देखें तो दो पहियों वाले वाहन पर सवार होकर चलने वाले सभी प्रकार के सबसे अधिक असुरक्षित व्यक्ति हो सकते हैं।

धूम्रपान पर बड़े वाहन बिजली चमकते हैं शायद उससे कम दो पहिए नहीं होते। उसके बाद कार की संख्या अधिक है जो करीब 15.1 प्रतिशत है। यह आश्चर्यजनक है कि पैदल चलने वालों की संख्या भी 12 प्रतिशत से अधिक है जो सड़क दुर्घटना में तीसरे नंबर पर आते हैं। यानी आप कार में हो, पैदल, बस में, या बाइक पर हो, सड़क पर आप सुरक्षित नहीं हैं। सड़कें गंभीर रूप से हिंसक हो चुकी हैं। एक अर्थ में देखें तो आधुनिक सभ्यता की हिंसा को देखने के लिए इसकी सड़कें ही काफी हैं। तैरने की केटेगरी के अनुसार यदि देखें तो न तो राष्ट्रीय राजमार्ग और न ही राज्य राजमार्ग और न ही अन्य सड़कें सुरक्षित की जा सकती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य सडकों के बीच हताहतों की संख्या के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। झारखंड नेशनल हाईवे पर 53615 लोगों की गंदगी हुई है तो अन्य सड़कों पर 62967. प्रति 100 किलोमीटर में देखें तो अन्य सड़कें अधिक सुरक्षित हैं नेशनल हाईवे की तुलना में- नेशनल हाईवे पर 40 किलोमीटर हुए तो अन्य सड़कों पर केवल 1. NCRB-2021 ने वर्ष के आधार पर भी प्राथमिकी को तैयार किया जाता है।

महीनों के सन्दर्भ में अगर इन दुर्घटनाओं में दुर्घटना होती है तो जनवरी (40235), फरवरी (36809), मार्च (38196) और जुलाई (31747), अगस्त (33125), अक्टूबर (35338), वीकेंड (36475) और शौक (38028) अधिक हताहतों की सूचना दर्ज की गई। दिसंबर और जनवरी में इन मौतों की आशंका और कुहासा हो सकता है। फरवरी और मार्च में त्योहारों की चहलकदमी तेज हो जाती है जिससे लोगों का आगमन बढ़ रहा है। मार्च में होली जैसे बड़े त्योहार आते हैं और उस समय प्रवासी यात्रा सहित अन्य सभी वर्गों के लोग अपने-अपने घरों की तरफ लौट जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से अनगिनत यात्रा की अफ्रा-तफरी में सड़क दुर्घटना के शिकार होते हैं। जुलाई और अगस्त में इन हादसों के ज़ोन में अत्यधिक वर्षा हो सकती है, क्योंकि यह प्रदूषण को और भी अधिक अस्वास्थ्यकर जीवों को प्रदान करता है। भारत में वैसे भी देखने की स्थिति बहुत ही खस जाती है, और बारिश के समय तो पूरी व्यवस्था ही पानी के साथ बह जाती है।

अक्टूबर और त्योहारों के महीने भी दीवाली और छठ जैसे महापर्व के अलावा कई छोटे-बड़े उत्सव होते हैं, जिस कारण इन महीनों में अगस्त में बढ़ोतरी होती है। और पक्का प्रबंधन और सुविधा नहीं होने के कारण लोग जैसे बसें, कार या अन्य महत्वपूर्ण के द्वारा अपने-अपने घरों को मिलाने का प्रयास करते हैं। और यह आसान नहीं होता। किसी कवि ने तो भारत में यात्रा के बारे में भी लिखा है- “अपने यहां उर्दू का सफ़र हमेशा अंग्रेजी की यात्रा हो जाती है”। एनसीआरबी ने इन मौतों के कई कारण दर्ज किए हैं जैसे कार में तकनीकी गड़बड़ी के कारण करीब 10 प्रतिशत, मिश्रित ड्राइविंग के कारण 27.5 प्रतिशत, खरोच मौसम के कारण करीब 3.5 प्रतिशत, निर्णय के कारण 1.9 प्रतिशत। लेकिन इनमें से सबसे बड़ी स्पीड ही दर्ज की गई जो करीब 60 प्रतिशत है। लेकिन इसे अंतिम और वास्तविक कारण नहीं माना जा सकता।

इन कारणों के पीछे के कारणों पर खोज की मार्ग है। ड्राइविंग केवल एक तकनीकी कार्य नहीं है। यह एक व्यापक मानसिक और शारीरिक क्रिया भी है। सड़क दुर्घटना एक सर्वभौम समस्या है, लेकिन इसके बावजूद भारत में इस पर बहुत अधिक प्रमाणिक खोज का अभाव है। खोज के नाम पर हमारे पास मिहिर बहुत सारे आंकड़े मात्र हैं। सड़क दुर्घटना के पीछे पूरा वैश्विक अर्थ तंत्र काम कर रहा है। वैश्विक उद्योगीकरण ने हम पर केवल उपभोक्तावाद को ही थोड़ा नहीं, बल्कि एक हिंसक और असंतुलित सचेत को भी थोप दिया है। महत्वपूर्ण की इक्विटी जल्दी है कि उनके अधिक से अधिक उत्पाद कम से कम समय में बाजार में बिक जाते हैं, रुख को जल्दी पसंद करते हैं कि कैसे विक्रेता और विक्रेता की गति को तेज किया जाए ताकि अर्थतंत्र को “गति” दी जाए।

ऐसे में कैसे आम आदमी अगर जल्दीबाजी कर रहा है तो यह उसकी व्यक्तिगत भूल हो सकती है! आदमी परेशान है। वह ऑफिस टाइम पर नहीं कहता है कि पेंशन केटे जाने का डर है, अगर मजदूर तेज गति से काम नहीं करता है तो उसे नौकरी से निकाला जा सकता है, अगर डिलीवरी बॉय 15 मिनट में बर्गर या पिज्जा नहीं पहुंचा तो पैसे उसकी जेब से उठ जाएगा। अगर बच्चे के समय पर स्कूल नहीं पहुंचा तो शिक्षक उसे दंड दे सकते हैं- ये उदाहरण सत्य हैं। जंगल के लिए जान जोखिम में डालना आज के समय की सबसे बड़ी सच्चाई है। सड़क ब्रेक हो या गंभीर तकनीकी खराबी, मौसम खसरा हो या उसे कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी, वन्य जीवन के लिए इस भागदौर संस्कृति का हिस्सा ही बनता है। समाजविज्ञानी उलटीख बेख के शब्दों में कहते हैं कि हमने एक जोखिम से भरी दुनिया को बनाया है और ऐसे में सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं तो यह निश्चित रूप से ऐसी ही ‘तेज और भविष्य औस संस्कृति’ का परिणाम है।

 
 

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