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कांग्रेस ने भारत की आजादी की रात में सेंगोल की भूमिका पर बीजेपी के दावे पर सवाल उठाया – बीजेपी ने समझाई भारत की आजादी में संगोल की अहमियत, कांग्रेस ने करोड़पति को फर्जी बताएं सबूत -दिल्ली देहात से


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, “इस बात के कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस राजदंड ‘सेंगोल’ को ब्रिटिश से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना था। राजगोपालाचारी के दोनों किसी भी व्यक्ति ने बायोग्राफ़ी में इस बारे में बात नहीं की है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि तमिलनाडु में सरकार और उसके ‘ढोल उल्लेखनीय वाले’ अपने राजनीतिक अंत के लिए अधिकृत राजदंड का उपयोग कर रहे हैं। इस बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वे सभी फर्जी हैं।

सेंटर ने दावा किया है कि ब्रिटिश भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को रजिस्टर करने के लिए ‘सेंगोल’ को प्रत्यक्ष पीएम नेहरू को भेजा गया था। सरकार और बीजेपी के नेताओं ने अपने कैमरे में तमिलनाडु के मैगजीन ‘तुगलक’ से लेकर अमेरिका के ‘टाइम’ मैगजीन तक कई व्यूज अनुमान का हवाला दिया है। बीजेपी ने कांग्रेस पर पवित्र ‘सेंगोल’ को ‘सोने की छड़ी’ पर कई हिंदू परंपराओं का अपमान किया और इसे संग्रहालय में रखने का आरोप भी लगाया। ऐसा माना जाता है कि ‘सेंगोल’ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में नेहरू के माता-पिता आनंद भवन में थे। आनंद भवन से बाद में इसे इलाहाबाद संग्रहालय में भेज दिया गया था।

पीएम मोदी 28 मई को नई संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री इस ‘सेंगोल’ को 16 तारीख को राष्ट्रपति के पद के रूप में स्थापित करेंगे। कांग्रेस समेत 20 विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने का ऐलान किया है।

स्वतंत्रता की रात ‘सेंगोल’ की सांकेतिक भूमिका में जिम्मेवारियों को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस पार्टी के चिराग संचार जयराम रमेश ने कहा, “नई संसद को व्हाट्सएप विश्वविद्यालय की शिकायतों से पवित्र किया जा रहा है। बीजेपी और आरएसएस ने दावों और तथ्यों को कम रखा है।” एक समाचार लेख का दावा करते हुए जयराम ने 4 बातें कही हैं। वह लिखते हैं कि अमीरात प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा एक शाही राजदंड की बात कही गई थी और मद्रास शहर में अगस्त 1947 में अशोक को आवेदनकर्ता बनाया गया था।

वहीं, द्रविड़ मुनेत्र कडगम (DMK) के नेता टीके एस एलंगोवन ने NDTV को बताया, ‘सेंगोल’ राजशाही का प्रतीक था न कि लोकतंत्र का. यह राजनीतिक दलों द्वारा नहीं बल्कि मठ द्वारा दिया जाता है। उन्होंने उस समय भारत को आजादी मिलने पर एक संगोल दिया था। इन प्राचीन वस्तुओं का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। ये राजशाही का प्रतीक है”.

गृह मंत्री अमित शाह ने ‘सेंगोल’ के इतिहास और विरासत के बारे में बयानों पर कहा था कि 1047 के बाद ‘सेंगोल’ को कमोबेश तख्त दिया गया था। शाह ने कहा, “1971 में एक तमिल विद्वान ने एक पुस्तक में इसका उल्लेख किया है। हमारी सरकार ने 2021-22 में इसका उल्लेख किया है। 96 वर्षीय तमिल विद्वान 1947 में सेंगोल प्रस्तुत करने के समय मौजूद थे। वो अब नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किए जाने के मौके पर भी उपस्थित रहेंगे।”

बीजेपी का कहना है कि वह चोल किंग्स द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सत्ता हस्तांतरण के पारंपरिक प्रतीक ‘सेंगोल’ को संसद में स्थापित कर सही जगह दे रहा है। गृह मंत्री ने बुधवार को कहा, “इस तरह का एक महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रतीक के लिए एक संग्रहालय सही जगह नहीं है। यह हमारी समृद्ध विरासत को दर्शाता है। जब पीएम ने अमृतकाल की घोषणा की, तो हमारे प्राचीन गौरव पर भारतीय गौरव कायाकल्प करना सर्वोच्च क्रोमेट में से एक था।”

रविवार को नई संसद के उद्घाटन में भाग लेने के लिए 24 से अधिक अधिनाम के प्रमुख (मूल रूप से शैव मठ) पहले ही राष्ट्रीय राजधानी में पहुंच गए हैं। इस मामले से वाकिफ लोगों के अनुसार उद्घाटन समारोह में वैदिक परंपराएं और तमिल रीति-रिवाज भी होंगे।

दक्षिण भारतीय राजनीति के विशेषज्ञ और लेखक सुगाता होती श्रीनिवासराजू ने कहा, “सेंगोल की कहानी सुरखियां बटोर रही है। यह कई तत्वों के साथ एक नैरेटिव है। लेकिन अगर यह सिर्फ जांच-पड़ताल है, तो इसकी भव्य कथा, इसकी अतीत और महत्व से कोई फ़ायदा नहीं होगा।”

उन्होंने कहा, “विपक्ष को मेगा, प्रामाणिक, जैविक, सांस्कृतिक कहानियों की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने पिछले 9 वर्षों में परवाह नहीं की। परिणामस्वरूप हर बार एक सांस्कृतिक कहानी बनाई जाती है। चाहे वो झूठ हो या सच हो … फिर भी पक्का यह जाल में फंस कर रह जाता है।”

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